औलाद की परवरिश व उसकी पढ़ाई
ज़करिया अलै0 ने दुआ की - ’’मेरे पालनहार ! तु अपने पास से मुझे पाक बाज़ औलाद दे , बेशक तू दुआ सुनने वाला है’’ (कुरआन ,सूरे मरियम)
इब्राहिम अलै0 ने दुआ की - ‘‘ऐ रब मुझे नेक और सालेह औलाद अता कर’’ (कुरआन)
1- यह कि व सदका जारिया कर जाये ।
2- ऐसा इल्म छोड़ जाये जिससे लोग फायदा उठायें ।
3- नेक औलाद जो वालिदैन के लिये दुआ करती रहे।
ज़करिया अलै0 ने दुआ की - ’’मेरे पालनहार ! तु अपने पास से मुझे पाक बाज़ औलाद दे , बेशक तू दुआ सुनने वाला है’’ (कुरआन ,सूरे मरियम)
इब्राहिम अलै0 ने दुआ की - ‘‘ऐ रब मुझे नेक और सालेह औलाद अता कर’’ (कुरआन)
- थ् औलाद को ख्ुादा का इनाम समझिये, उनके पैदा होने पर खैर व बरकत की दुआओ के साथ खुशी मनाईये। खुदा का शुक्र अदा कीजिये कि उसने आपकेा अपने एक बन्दे की परवरिश की तौफीक बख्शी और यह मौका दिया कि आप अपने पीछे अपने दीन व दुनिया का जानशीं छोड़ जायें ।
- थ् माॅ का फर्ज यह है कि वह बच्चे को दूध के एक एक कतरे के साथ तौहीद का सबक रसूल स0 का इश्क और दीन की मोहब्बत भी पिलाये और इस मोहब्बत को उसके कल्ब व रूह में मिलाने की केाशिश करे।
- थ् बच्चे के लिये अच्छा सा नाम तजवीज़ करिये जो या तो पैगम्बर के नाम पर हेां या अल्लाह के नाम के साथ अब्द लगाकर । नबी स0 ने फरमाया मेरे नाम पर नाम रखेा,मेरी कुन्नियत पर मत रखो । (हदीस)
- थ् नबी स0 का इर्शाद है जब औलाद बोलने लगे तेा उसे ला इलाह-इल्लल्लाह सिखा दो फिर परवाह मत करो कि कब मरे और जब दूध के दाॅत गिर जायें तो नमाज़ का हुक्म देा । (हदीस)
- थ् बच्चों को डराने से बचिये । बचपन का यह डर सारी उम्र जे़हन व दिमाग पर छाया रहता है ,ऐसे बच्चे आम तौर पर ज़िन्दगी मे कोई बड़ा कारनामा अंजाम देने लायक नहीं रहते ।
- थ् औलाद को बात बात पर डाॅटने ,झिड़कने और बुरा भला कहने से सख्ती से परहेज़ कीजिये और उनकी कोताहियों पर बेज़ार होने और नफरत जाहिर करने के बजाये पूरी हिम्मत के साथ उनकी तर्बियत करने की मोहब्बत भरी कोशिश कीजिये ।
- थ् औलाद में इताअत व फरमाबरदारी के जज़्बे को उभारिये
- थ् औलाद केा पाकीज़ा तालीम व तर्बियत से सजाने के लिये अपनी सारी कोशिशे वक्फ कर दीजिये । नबी स0 का इर्शाद है ,’’बाप अपनी औलाद को जो कुछ दे सकता है ,उसमें सबसे बेहतर तोहफा औलाद की अच्छी तालीम व तर्बियत है’’। (हदीस)
- थ् बच्चे जब सात साल के हेा जायें , तो उनको नमाज़ सिखईये, नमाज़ पढ़ने की ताकीद कीजिये । नबी स0 का इर्शाद है ,’’अपनी औलाद को नमाज़ पढ़ने की ताकीद करो जब वह सात साल के हो जायंे,नमाज़ न पढ़ने पर उनको सजा दो जब वह दस साल के हो जायें और इस उम्र मे पहुॅचने के बाद उनके बिस्तर अलग-अलग कर दो’’ (हदीस)
- थ् बच्चों को हमेशा साफ सुथरा रखिये,उनकी पाकी सफाई नहाने वगैरह का ख्याल रखिये,तड़क भड़क के कपड़े पहना कर उनका मिजाज़ न ,खराब करिये ।
- थ् दूसरोें के सामने बच्चों के ऐब न बयान करिये, किसी के सामने या उनकी उम्र से छोटे बच्चेां के सामने उनको शर्मिन्दा करने व उनकी गैरत को ठेस लगाने से भी सख्ती से परहेज़ कीजिये ।
- थ् बच्चों की हिम्मत बढ़ाने के लिये उनकी मामुली अच्छाईयों की भी दिल खेालकर तारीफ कीजिये ।
- थ् हमेशा उनका दिल बढ़ाने और उनमें अपने आप में यकीन और हौसला पैदा करने की कोशिश कीजिये ताकि ये ज़िन्दगी के मैदान में ऊॅची से ऊॅची से जगह हासिल कर सकें ।
- थ् बच्चों केा नबियेां के किस्से,नेक बुजुर्गाें की कहानियाॅ और सहाबा किराम के मुजाहिदाना कारनामें जरूर सुनाईये । तर्बियत व तहजीब के लिये यहे बहुत ज़रूरी है ।
- थ् नबी स0 की जिन्दगी के वाकेआत बताईये और शुरू ही से उनके दिलों में रसूल स0 की हकीकी मोहब्बत पैदा करने की कोशिश कीजिये।
- थ् कभी कभी बच्चों के हाथ से गरीबों को कुछ खाना या पैसा वगैरह भी दिलाईये , और यह मौका भी जुटाईये कि खाने पीने की चीज़ें बहन भाईयों में खुद ही बाॅटे , ताकि एक दूसरे के हकों का एहसास और इंसाफ की आदत पैदा हो ।
- थ् बच्चों की हर सही गलत जिद पूरी न कीजिये , कभी कभी मुनासिब सख्ती भी कीजिये ।बेजा लाड़ प्यार से उनकेा ज़िद्दी और सरकश न बनाईये ।
- थ् बच्चों की आदत डालिये कि अपना काम अपने हाथ से करें। बच्चों को जफाकश, मेहनती और सख्त मेहनत करने वाला बनाईये ।
- थ् बच्चों की आपसी लड़ाई में अपने बच्चें की बेजा हिमायत न कीजिये । अपने सभी औलादों के साथ बराबरी का सुलूक कीजिये ।
- थ् बच्चों के सामने हमेंशा अच्छा अमली नमूना पेश कीजिये । आप की ज़िन्दगी के लिये हर वक्त का खामोश उस्ताद है , जिससे बच्चे हर वक्त पढ़ते और सीखते रहते हैं ।
- थ् लड़की हो या लड़का दोनो ही खुदा की देन हैं और खुदा ही बेहतर जानता है कि आपके हक में लड़की अच्छी है या लड़का
- थ् लड़कियों की तर्बियत बड़ी खुशदिली , रूहानी खुशी और दीनी एहसास के साथ कीजिये और उसके बदले में खुदा से बहिश्त की आरज़ू कीजिये । नबी स0 का इर्शाद है ,’’जिस आदमी ने तीन लड़कियों या तीन बहनों की सरपरस्ती की ,उन्हें तालीम व तहज़ीब सिखाई उनके साथ नर्मी का व्यहवार किया ,यहाॅ तक कि खुदा उसे बेनयिाज़ कर दे तो ऐसे आदमी के लिये खुदा ने जन्नत वाजिब फरमा दी है......’’(हदीस)
- थ् लड़की को हीन न समझिये , न लड़के को उस पर किसी मामले में तरजीह दीजिये ।
- थ् इन तमाम अमली तदबीरों के साथ साथ दिल के इत्मिनान और लगन के साथ अल्लाह की बारगाह में औलाद के हक में दुआ भी करते रहिये । अल्लाह की जात से उम्मीद है कि वह माॅ बाप की दिल की गहराईयों से निकली हुयी दर्द भरी दुआयें बर्बाद न करेगा ।
- थ् नबी स0 ने फरमाया ’’ तीन किस्म के अमल ऐसे हैं जिनका अज्र व सवाब मरने के बाद भी मिलता रहता रहता है -
1- यह कि व सदका जारिया कर जाये ।
2- ऐसा इल्म छोड़ जाये जिससे लोग फायदा उठायें ।
3- नेक औलाद जो वालिदैन के लिये दुआ करती रहे।
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